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धज्जी  : स्त्री० [सं० धटी] कपड़े, कागज, चादर, धातु पत्थर, लकड़ी आदि का वह पतला लंबा टुकड़ा या पट्टी जो उन्हें काटने, चीरने, फाड़ने आदि पर निकलती है। मुहा०—(किसी चीज की) धज्जियाँ उड़ाना=काट, चीर तोड़ या फाड़कर इतने छोटे-छोटे टुकड़े करना कि वे किसी काम के न रह जायँ। (किसी व्यक्ति की) धज्जियाँ उड़ाना=(क) बहुत अधिक मारना पीटना। (ख) दोषों या बुराइयों की इतने जोरों से चर्चा करना कि लोग उसका वास्तविक स्वरूप समझकर उसके प्रति उपेक्षा या घृणा का व्यवहार करने लगें। (किसी बात या सिद्धांत की) धज्जियाँ उड़ाना= गलत या दोषपूर्ण सिद्ध करते हुए उसका सारा महत्त्व नष्ट करना। निरर्थक सिद्ध करना। (किसी को) धज्जियाँ लगना=इतना अधिक दीन-हीन या दरिद्र हो जाना कि चीथड़े लपेट कर रहना पड़े। (किसी का) धज्जियाँ लेना=(किसी की) धज्जियाँ उड़ाना। (किसी व्यक्ति का) धज्जी हो जाना=बहुत ही कृश, क्षीण या दुर्बल हो जाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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